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हरिद्वार में ऋषिकेश के लिए 'उत्तराखंड परिवहन' की बस पकड़ ली, बस में चढते ही कंडक्टर नीरज से बोला," जब चलना ही था, तो उतरे क्यों थे ?" नीरज मेरी तरफ इशारा कर के बोला, "इस आफत को लेने उतरा था ।"
बस खाली सी ही थी। हम आराम से बैठ गए ....'ऋषिकेश' नाम दिमाग में बार-बार टकरा रहा था, ऋषि +केश = ऋषि के बाल । मतलब क्या ऋषि के बाल? कोई तारतम्य नहीं बैठ रहा था।
हरिद्वार से निकलते ही हमें उत्तराखंड का विकास (विनाश) दिखाई दिया। सड़कें तो चौड़ी हो रही थी, लेकिन उसके लिए हजारों पेड़ों की बलि दी जा रहा थी। मन खिन्न हो गया।
मैं घर से नक्शा -वक्शा तो देख कर चला नहीं था, हरिद्वार के बाद नीरज के भरोसे और उसी के हिसाब से चलना था। ऋषिकेश में उतरने के बाद 'फैंटा' पीया गया और फिर वहां से देवप्रयाग ।
देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा मिलती है, ये बात मुझे नीरज से ही पता चली। साफ़ पानी देखकर मेरे 'मुंह में पानी' आ जाता है और मैंने बस में ही घोषणा कर दी की, मैं तो नहाऊंगा!!!
देवप्रयाग में परांठे उदरस्थ करने के बाद संगम के लिए चल दिए। भागीरथी का जल निर्मल, स्वच्छ और नीला दिखाई दे रहा था, वहीँ अलकनंदा का जल मिटटी युक्त था।
मन्दाकिनी पर बने इस पुल को पार करके देव प्रयाग संगम पर गए थे |
पानी का प्रवाह मेरी उम्मीद से ज्यादा होने के कारण कूद- कूद के नहाने के विचार को त्यागना पड़ा । वहीँ बैठे एक बुजुर्ग 'पंडित' ने प्लास्टिक का मग मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा ,"इससे नहा लो।"
(यहाँ एक और बुजुर्ग "पंडित" ने मेरे हाथ में जल और दूब देने की कोशिश की और मैंने जरूरत से ज्यादा सख्ती से मना कर दिया। हालाँकि उनके मन्तव्य को समझ कर चलते वक्त मैं दोनों बुजुर्ग "पंडितों" को पांच-पांच रुपये दे कर आया। हम धर्म करने नहीं, घूमने गए थे। (मुझे पेड़-पौधे,पर्वत, नदियाँ, झरने और प्रकृति के नानारूपों में ही ईश्वर के दर्शन होते हैं । )
गंगाजी का जल जैसे ही शरीर से स्पर्शित हुआ, मन आनंद से सरोबार हो उठा, उस विचित्र आनंद को महसूस करने के लिए आपके मन के द्वार खुले हुए होने चाहिए (किसी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित हुए बिना,बच्चे का सा मन )। एक नई दुनिया में प्रविष्ट होने के एहसास से सरोबार था मैं!!!!
वो नीचे संगम पर स्नान किया गया |
आनंद और नए एहसास को संजोये देवप्रयाग से रूद्रप्रयाग के लिए एक जीप में बैठ गए।
पर्वतों की ऊंचाई और अलकनंदा की गहराई बढ़ने के साथ ही मेरे मन में किंचित भय और विस्मय साथ-साथ आने लगे थे। मन में अख़बार और टीवी की बुरी खबरें जो देखी, सुनी और पढ़ी थीं, वो आंदोलित होने लगी थीं।
उस डर को और गहराई से महसूस करने के लिए मैं खिड़की के पास बैठ गया था । तीव्र मोड़ों और अच्छी व ख़राब सड़कों को पार करते हुए हम जीप से रुद्रप्रयाग की तरफ बढ़ रहे थे। अँधेरा घिरने के बाद श्रीनगर पार किया और रुद्रप्रयाग पहुँच गए। वहां उतरने पर बिजली गुल होने की वजह से अँधेरा छाया हुआ था । एक-दो लोग पास आकर बोले, ''होटल चाहिए?" हम लोग दूसरा होटल देखने के विचार से आगे बढ़ गए आगे अँधेरा होने की वजह से होटल के लिए पूछने वाले उन्ही लोगों को बुला कर होटल दिखाने के लिए कहा।
उस डर को और गहराई से महसूस करने के लिए मैं खिड़की के पास बैठ गया था । तीव्र मोड़ों और अच्छी व ख़राब सड़कों को पार करते हुए हम जीप से रुद्रप्रयाग की तरफ बढ़ रहे थे। अँधेरा घिरने के बाद श्रीनगर पार किया और रुद्रप्रयाग पहुँच गए। वहां उतरने पर बिजली गुल होने की वजह से अँधेरा छाया हुआ था । एक-दो लोग पास आकर बोले, ''होटल चाहिए?" हम लोग दूसरा होटल देखने के विचार से आगे बढ़ गए आगे अँधेरा होने की वजह से होटल के लिए पूछने वाले उन्ही लोगों को बुला कर होटल दिखाने के लिए कहा।
छोटी टोर्च के उजाले में गन्दी और गीली सी सीढियाँ उतार कर वो शख्स हमें सड़क के स्तर से एक मंजिल नीचे ले गया, ये एक लॉज था। कमरा दिखाने के बाद बोला, "तीन सौ रुपये।"
हमने कहा, "ज्यादा है।"
वो बोला,"टीवी भी है।"
हमने कहा,"बेकार है, लाईट नहीं आ रही है।"
अंत में वो दो सौ रुपये पे मान गया।
खाना खाने के बाद सोने को हुए तो पलंग के नीचे 'कुछ' बजा, पलंग के नीचे झांककर देखा तो पलंग के दो पायों की जगह पीपों पर टिका हुआ था और वो करवट लेते हुए बजते थे ।
अगली सुबह .....अगले भाग में ।
क्रमशः .....
mubarak ho,bidhan babu neeraj babu ka saath achchhe achchho ko hi milta hai
ReplyDeleteविधान चन्द्र,,,,,, आज आपने बेहद ही सुन्दर शब्दों में अपनी यात्रा का वर्णन किया है, हो सके तो फ़ोटो थोडा सा बडे कर दीजिए, अच्छे लगते है।
ReplyDeletesundar vratant
ReplyDelete@amanvaishnavi
ReplyDelete@जाटदेवता संदीप पवाँर
@dr.mahendrag
आप तीनों को धन्यवाद , आपका मार्गदर्शन सर आँखों पर !!!
विधान चंद्र जी.....बहुत बढ़िया सुन्दर शब्दों वर्णन किया आपने अपनी इस यात्रा का....नीरज जी का अच्छा साथ मिला हैं आपको तो यात्रा तो रोमांचक ही रहेगी......| आपके फोटोओ संख्या केवल तीन हैं, यह बढाये जा सकते हैं और थोड़ा बड़े आकार में लगाये तो और भी मजा आ जायेगा ...|
ReplyDeleteधन्यवाद
gappu ji jo pul mandakini nadi par hai use dekh kar mera man kara tha wahan se diving karne ka lekin koi saath nahi tha isliye ye moorkhta nahi kar paaya ..............
ReplyDeleteye pul hai bahut shaandaar.......
Bahut hi khubsurat yatra varnan....or jo mai kahna chahta tha sandeep bhai ne pahle hi kh diya hai.
ReplyDeletethanks suresh ji
Deleteविधान जी नमस्कार, आज आपके ब्लॉग से जुड़कर बहुत ख़ुशी हुई हैं, नीरज जी के ब्लॉग में आपके फोटो देखे थे, बहुत अच्छे थे, विशेष कर सुमो वाला फोटो.
ReplyDeleteधन्यवाद सर , आपकी हौसला आफजाई जरूरी है !!
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