11 से 13 अगस्त,
2014
श्रीनगर
हवाई अड्डे पर उतरते ही नथुनों से बड़ी साफ –साफ सी और नाजुक सी हवा टकराई I बड़ा
अच्छा लग रहा था I सूरज प्रखरता से निकला
हुआ था , इसलिए धूप जरूर थोड़ी चुभ रही थी I
यहाँ से सफर शुरू करते हुए ये जरा भी अहसास नहीं था कि , सफर के अंत तक एक रहस्यमय छुपी हुई और अनजान दुनिया को
देखने का दुर्लभ अवसर मिलेगा I हालाँकि इस यात्रा में ‘तन–मन–धन’ तीनों उम्मीद से ज्यादा ‘खर्च’ हो गए I
डल झील में शिकारा |
श्रीनगर से कारगिल तक तो सड़क ठीक थी , पर कारगिल से पदुम तक लगभग 250 किलोमीटर तक वाहनों के आने – जाने से जो रास्ता बना था , उसे ही सडक कह सकते हैं I गाँव और खेत तो पीछे छूट गए पर पहाड़ और नदी साथ हो लिए I हिमनद (ग्लेशियर) भी हमारी इस यात्रा के गवाह बने I
हिमनद (ग्लेशियर) भी हमारी इस यात्रा के गवाह बने I |
रात
09-10 बजे तक ‘रांग्दुम’ की सीमा में
प्रवेश कर चुके थे I सौर उर्जा से प्रकशित
ये गाँव उस वीराने में बड़ा सुकून पहुंचा रहा था I
ड्राइवर ‘जफर’ ने गाड़ी ‘जे & के ‘ ट्यूरिज्म के गेस्ट हाउस की
चारदीवारी में प्रवेश कराई तो ‘रामसे ब्रदर्स’ की फिल्मों के डाक बंगले याद आ गए I जब आँखे थोड़ी देखने की अभ्यस्त हुई तो पता चला
कि ये जगह जनविहीन नहीं है I जफ़र सुबह साढ़े चार बजे उठने का फरमान सुना कर अपने ड्राइवर भाइयों के कमरे में जा चुका था I मुझे नीरज जाट के सुबह चार बजे उठने पर शक था,
क्या पक्का यकीन था कि ये नहीं उठ पायेगा I
हम (मैं और
प्रकाश यादव जी ) ठण्ड और भूख से लड़ने की योजना बना रहे थे , नीरज अपने कैमरे के
ट्राईपोड और अपने फोटोग्राफी के हुनर को आजमाने में व्यस्त हो गया था I अचानक बाउंड्री के बाहर से आवाज आई , “ इधर आओ
!! भाई इधर आओ !!” मैंने पुछा, ‘क्या हुआ
?’
नीरज की
आवाज – ‘भाई मजा आ ग्या!’ ..............
असल में
स्वच्छ चांदनी रात में उसकी फोटो बहुत अच्छी आ रही थी और हम इस सोच में थे कि
ट्राईपोड उधार मिलेगा तो अगली लोकेशन पर अपन भी हाथ आजमा ही लेंगे , उस टाइम ठण्ड
और भूख के कारण फोटो खींचने का मन भी नहीं कर रहा था I
मैंने बेमन
से खाना खाया और अपने कमरे में चल दिए ...........
‘सर्वाइकल’
की बीमारी के बाद मुझे स्टेराइड दिए गए थे I
इसलिए अपने खर्राटों (जो कि अब कम
हो चुके थे ) को ले कर भी सशंकित था I मैं
नहीं चाहता था कि कोई मेरी वजह से परेशान हो I
छ: सौ रुपये के एक कमरे में दो बेड लगे हुए थे , प्रकाश जी और नीरज को धरम
संकट में न डालते हुए मैंने ‘भूमि –शयन’ की घोषणा कर दी I मन में कहीं ये भी था कि, अगर वो बेड पर सोते
हैं, तो एक सुविधा के बदले दूसरी असुविधा (खर्राटे) बर्दाश्त कर लेंगे I
माने के शीर्ष पर भगवान भास्कर की किरणे |
सुबह साढ़े तीन बजे दरवाजे पर दस्तक हुई , मुझे ठण्ड के मारे नींद नहीं आई थी I मैं जाग गया था, लेकिन तेल और तेल की धार (नीरज को ) देखने के चक्कर में रजाई में ही पड़ा रहा I प्रकाश जी भी जाग चुके थे , लेकिन गरम रजाई से बाहर निकलने की उनकी भी इच्छा नहीं हो रही थी I ड्राइवर एक बार हार कर पुनः दरवाजा पीटना शुरू कर चुका था , हमने आवाज लगाई कि, हम जग चुके हैं , जिससे वो दरवाजा पीटना तो बंद करे I मैं और प्रकाश जी उठ कर “बूट ” होने लगे थे , पर नीरजवा ‘बुत’ बना पड़ा था I
.............खैर
हमें और सामान को लाद कर ‘स्कोर्पियो’ ‘जे & के ‘ ट्यूरिज्म के गेस्ट हाउस की
चारदीवारी से बाहर निकल चुकी थी I शांत और स्वच्छ चांदनी रात में साफ़ दिख रहा था
कि गाड़ी सड़क छोड़ के ऐसी जगह चल रही थी , जहाँ पानी बहा हो I ...........बहुत बड़ा एरिया था वो ,लगभग चार –पांच
किलोमीटर .........कंकड़ ही कंकड़ ...पत्थर ही पत्थर !! रास्ता रहस्यात्मक होता जा
रहा था !
कुछ आगे
जाने पर एक नाका सा मिला और उम्मीद के उलट भारतीय सेना का जवान मुस्तैद मिला (
सेना और जवान को अपन सैल्यूट करता है ) I सभी के ‘इंडियन्स’ होने की पुष्टि करने
के बाद हमें बिना किसी फोर्मलिटी के जाने दिया गया I
‘जफ़र’ उजाले
के साथ ही अपनी गाड़ी की गति बढाता जा रहा था ...............
आसमान में
राख-सी रंगत बिखरने लगी थी और धीरे –धीरे सूर्य रश्मियाँ पर्वत शिखरों पर उतरने
लगीं थी I ‘हिमावर्त ‘ पर्वत शिखरों पर भगवान भास्कर की सुनहरी किरणों ने अपनी आभा
बिखेरी तो , ऐसा लग रहा था , जैसे कोई पीताम्बर पहने तपस्वी अपने अटल तप में रत हो
I कोई ‘मेनका’ और ‘रम्भा’ नहीं थी , उनकी
तपस्या भंग करने के लिए I
पर्वत शिखरों पर भगवान भास्कर की सुनहरी किरणे |
गाड़ी
के हिचकोले खाने और तेज गति से चलने के बावजूद ये दृश्य कैमरे में कैद हो रहे थे I
लगभग ‘वनस्पति – शून्य’ इस उजाड़ सौन्दर्य
को हम देखते हुए आगे बढे जा रहे थे ......और ‘पेंजिला पास ‘ से नीचे उतरने का
अहसास हुआ ; क्योंकि नीचे दूर तक पथरीली सड़क
और मैदान सा दिखाई दे रहा था I
14000 फीट पर इसका टॉप है , जिसे ‘पेंजिला टॉप’ कहते हैं I
‘पेंजिला टॉप’ |
ड्राइवर
‘जफर ‘ को पदुम पहुँचने की जल्दी थी पर हमें बिलकुल नहीं I मैं
चाह रहा था कि ये गाड़ी रोकता हुआ चले , जिससे मैं फोटो खींच पाऊं I पता
नहीं इस रास्ते से जीवन में दुबारा आना हो कि नहीं !
सवेरा
हो चुका था I पदुम से भोर में निकलने वाली
गाड़ियाँ हमें मिलने लगी थी I
पदुम से भोर में निकलने वाली गाड़ियाँ हमें मिलने लगी थी I |
‘फ्या’ |
सोचा कुछ फोटो लूं , पर एक तो गाड़ी की स्पीड और
दूसरे ड्राइवर और नीरज की इसमें कोई रूचि न होने की वजह से मैं जैसी फोटो लेना चाह
रहा था, वैसी फोटो नहीं ले पाया I
गाड़ी
एक पुलिस चैक पोस्ट पर रुकी I जफर गाड़ी की एंट्री करवा कर वापस आया और नाके के
आगे एक दुकान पर गाड़ी रोक दी I ये चाय
नाश्ते की छोटी सी दुकान थी I
चाय नाश्ते की छोटी सी दुकान |
हमने दुकानदार
से चाय और बिस्कुट के लिए बोला I जफर को
भी चाय के लिए बोला, तो वो अचानक एक तरफ को भागता हुआ सा चला गया I हम
आवाज दे ही रहे थे की दुकानदार , जो कि एक बौद्ध था बोला, “सर जी वो नहीं पिएगा I “
हमने
पूछा , ‘क्यों ?‘
तो
दुकानदार बोला , ‘ मुसलमान हमारे यहाँ कुछ खाते –पीते नहीं हैं I“
हम
माजरा समझ चुके थे I
अबरान में दुकानदार के साथ नीरज |
ये
‘अबरान’ नाम का एक छोटा सा बौद्ध गाँव था I मेरे दिमाग में बार- बार यही एक बात आ
रही थी कि , इस गाँव तक हमें पहुँचने में लगभग तीन दिन हो चुके थे और हमें इससे भी
बहुत रिमोट एरिया में जाना था I कैसे जीवन जीते होंगे यहाँ के लोग !!
सड़क के गेट पर बौद्ध माने |
कुछ किलोमीटरों का फासला तय करने के बाद पक्की सडक आ गई थी I
पदुम से पहले ‘सानी’ या ‘सैनी’ ऐसा गाँव
आता है , उस गाँव में छोटे से तालाब के किनारे बुद्ध की मूर्ति दिखाई दी I बड़ा
सुन्दर दृश्य था , लेकिन उस ‘जफर’ को अब कुछ ज्यादा ही जल्दी थी I अफ़सोस फोटो नहीं
ले पाया I
पदुम
की सीमा में प्रवेश करते ही किसी यूरोपियन पहाड़ी गाँव का सा एहसास हुआ I भीड़ भाड
बिलकुल नहीं I वाहनों की रेलमपेल भी नहीं I स्कूली बच्चे अपने स्कूल के लिए जा रहे
थे I दूर – दूर बिखरे हुए घर I
आखिर
‘जान्सकर वैली’ के एक प्रमुख शहर ‘पदुम’ में हम पहुँच ही गए I लगभग 250 किलोमीटर चलने के बाद भी अभी हम कारगिल
जिले में ही थे I हमारे यहाँ मैदानों में तो इतनी दूरी पर राज्यों की सीमा बदल
जाती है I
जहाँ
एक ओर पदुम पहुँचने का सुकून था तो , दूसरी ओर वहां से लगभग पचास किलोमीटर आगे,
जहाँ तक सडक थी , ‘अनमु ‘ पहुँचने की फ़िक्र भी I पदुम से आगे शेयरिंग टैक्सी या
पर्सनल टैक्सी के अलावा कोई साधन नहीं था I हमने जफर से बात की तो उस वक्त उसने
कोई जवाब नहीं दिया I पदुम कस्बे में पहुँच कर उसने अपनी गाड़ी एक मुसलमान होटल के
आगे सड़क के किनारे रोक दी I एक जगह को छोड़ पूरे सफ़र में उसने यही किया था I मैं
शाकाहारी था और सोच रहा था कोई शाकाहारी होटल मिल जाये I हालाँकि यहाँ बौद्ध भी
मांसाहारी ही हैं I
हमने
सामान उतारते हुए पुछा की ‘अनमु’ छोड़ने के क्या लोगे ?
जफ़र
बोला , “पांच हजार’
नीरज
ने कहा , ‘छोडो , इसके जाने का मन नहीं है I”
हम
सामान उतार कर किसी अच्छे होटल और गाड़ी की तलाश में आगे बढ़ लिए I
एक
अच्छे से रेस्टोरेंट टाइप होटल में अपना सामान डाल कर अपनी पसंद के खाने का आर्डर
दे दिया I अपन मैगी से ही काम चला रहे थे I ‘मोमोज’ मुझे अच्छे नहीं लगे I
पदुम से अनमु के लिए कोई टैक्सी नहीं मिल रही थी
और जो मिल रही थी वो 3500 -3000 रुपये के बीच किराया (पचास किलोमीटर दूर का ) मांग रहे थे I यहाँ से विदेशी ‘अनमु’ के लिए
खूब जाते हैं , तो मैंने सोचा कि विदेशियों को साथ ले लें तो किराया बंट जायेगा और
हमें सस्ता पड़ेगा I
पदुम में टैक्सी का इंतजार |
अनमु की ओर |
मैंने
एक विदेशी जोड़े से बात की तो वो भी ‘अनमु’ जाना चाहते थे , पर वो पर हेड 400 रुपये
से एक भी रूपया अधिक नहीं देने पर अड़े हुए थे I
हम भी परेशान से हो गए थे, सोचा आठ सौ इनसे लेकर बाकि हम तीन मिल कर दे
देंगे I बड़ी झिक-झिक के बाद गाड़ी चलने लगी
तो , उन विदेशियों ने एक शर्त और रख दी I शर्त ये कि, हम बीच की सीट पर ही बैठेंगे
I मेरा दिमाग भन्ना गया ! एक तो पैसे कम और उस पर सीट भी पसंद की !! वाह! हम ही
बेवक़ूफ़ मिले ! फिर मैंने सोचा मान लो,
नहीं तो आठ सौ रुपये भी जेब से देने पड़ेंगे I हमारे लिए समय कीमती था I मैं और प्रकाश जी मन मार कर पीछे बैठ गए I
पदुम
से कुछ दूर चलने के बाद खतरनाक रास्ता शुरू हो गया और मैं नींद के आगोश में समाता
चला गया .............
शेष अगले भाग में जारी .......
अगला भाग पढने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :-
पुखताल गोम्पा : एक छुपी हुई , रहस्यात्मक दुनिया (भाग –दो ) Phukhtal Gompa
पुखताल गोम्पा : एक छुपी हुई , रहस्यात्मक दुनिया (अंतिम भाग –तीन ) Phukhtal Gompa
शेष अगले भाग में जारी .......
एक रास्ता |
हिमनद (ग्लेशियर ) |
बेहतरीन लोकेशन पर एक घर |
ये रास्ता तो फिर भी बढ़िया है |
माने और मस्जिद ही दिखाई देती हैं........मंदिर नहीं ! |
पुखताल गोम्पा : एक छुपी हुई , रहस्यात्मक दुनिया (भाग –दो ) Phukhtal Gompa
पुखताल गोम्पा : एक छुपी हुई , रहस्यात्मक दुनिया (अंतिम भाग –तीन ) Phukhtal Gompa
बढिया रिपोर्टिंग …… अब आगे बढो।
ReplyDeleteयस कैप्टेन !!
DeleteVidhan ji ,Namaskar.......Aapka Pura Blog Dekha Ha ,Photos Bahut Hi Beautiful Han...Manko Mohanye Wali Han.........Parkarti Ko Sayad Me Nazdik Se Dekh Rahaa Hun.......Yesa Mujhe Partit Hua ,,,Bahut Sundar Blog Ha......SHAYAD...Aap Se Bhe Sundar..........Thanx....Congrts.............
ReplyDeleteRegards.....Karmvir Katewa Jaipur
ReplyDeleteकर्मवीर जी धन्यवाद !!
Deleteरोचक यात्रा वृतांत, विधान भाई...
ReplyDeleteधन्यवाद विपिन भाई !!
DeleteVidhan Bhai, Nice Post ,excellent narration. Pictures have been captured beautifully. Keep it up .waiting for the next Post.
ReplyDeleteNaresh Sehgal. Ambala
नरेश भाई अगली पोस्ट में लग हुआ हूँ ! धन्यवाद !
Deleteविधान भाई , आपका यह वृतांत और बाकी सब posts भी पढ़ी।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा सब पढ़ कर, बिलकुल 'feel good ' वाली feeling आ गई.
धन्यवाद
Wow Vidhan jee. Nice blog.Good pictures and nice description.
ReplyDeleteStone जी और विशाल भाई धन्यवाद !!
ReplyDeleteविधान भाई आप बहुत अच्छा लिखते है.मै पहली बार ही आपके ब्लॉग पर आया हुं.fbपर तो आपके फोटो देख ही चुका हुं.
ReplyDeleteबहुत बढिया,पढ कर मजा आ गया.
Neeraj ki post padhne ke baad bhi vidhan apki post or photo jordar lage --laga hi nahi ki ye padh chuki hun--
ReplyDeleteबहुत सुन्दर तथा मोहक चित्रण वर्णन भी मनोरंजक तथा जानकारीपूर्ण. आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा (नीरज के ब्लॉग से लिंक मिला) आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर लगा, कोशिश करूंगा नियमित आने की. नए वर्ष की शुभकामनाओं के साथ।
ReplyDeleteमुकेश.....
kya baat hi vidhan bhai
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