Friday, July 27, 2012

यहाँ पदचिन्हों के सिवाय कुछ न छोड़ें ‘Leave your Footprint, not your garbage’

बहुत शर्म आती है जब सुनता हूँ कि जोडी अंडरहिल (Jodie Underhill) नाम  की महिला  विदेशों से आकर हमारे द्वारा पहाड़ों पर फैलाये  कचरे  को  साफ़  करती  है!! जोडी अंडरहिल हिमाचल में  मणि महेश और ने जगहों पर अपनी स्वयंसेवी टीम के साथ पहुंचकर सफाई कार्य करती हैं और हम जैसे लोग वहां धर्म के नाम पर कचरा फैला कर आ जाते हैं   
जोडी  अंडरहिल (Jodie Underhill) कुत्ते के साथ मिल कर सफाई करती हैं
अपने बलॉगर बंधु श्री सुरेश  चिपलूनकर जी के ब्लॉग पर उनका लेख  (शवयात्रा,श्मशान और शवदाह के बारे में भाग -1 ) सन 2008   पढ़ा था प्रस्तुत  है उसका एक अंश,"व्यक्तिगतरूप से मुख्यतः दो कारणों से मैं शव के दाह संस्कार के खिलाफ़ हूँ। पहला, देश में एक वर्ष में लगभग 5 करोड़ पेड़ सिर्फ़ शवदाह के लिये काटे जाते हैं, हिन्दुओं की आबादी एक अरब पहुँचने वाली है औरदूसरी तरफ़ जंगल साफ़ होते जा रहे हैं (सोचकर कंपकंपी होती है कि बाकीके कामों के लिये कितने करोड़ पेड़ काटे जाते होंगे)। और दूसरा, हमारी तथाकथित “पवित्र” नदियाँ जो पहले से ही उद्योगपतियों द्वारा प्रदूषित कर दी गई हैं, शवों की राख और अस्थि विसर्जन से बेहद मैली हो चुकी हैं।"  

इन पंक्तियों में पेड़ों कि कटाई के  बारे में जो जानकारी चिपलूनकर जी ने दी है, उससे मुझे भी 'कंपकंपी' होने  लगी भीड़ चाल और भेड़ चाल में हम  क्या किये जा रहें हैं, ये हमें खुद नहीं मालूम !!

प्रकृति से बेहद लगाव होने के कारण मुझे कटे हुए पेड़ों को देख कर बेहद क्षुब्धता होती है।  हमारी सरकारों द्वारा पेड़ों की कटाई को लेकर कोई कठोर कार्यवाही न किया जाना मेरी क्षुब्धता को और बढ़ा देता  है। समस्या और भी गंभीर हो  जाती है  जब सरकारों द्वारा ही विकास के नाम पर लाखों  पेड़ों की बलि चढ़ा दी जाती है। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार अकेले राजस्थान में ही पांच लाख पेड़ सिर्फ इस लिए काट दिए गए, क्योंकि वो राष्ट्रीय राजमार्गों के बनने में आड़े आ रहे थे   

हर वर्ष लाखों शवों और उन की राख को गंगा और अन्य नदियों  में बहा कर उनको हमने नाले से  भी बदतर बना  दिया है  पीना तो छोड़वो पानी नहाने योग्य भी नहीं हैं। आस्था के नाम पे जो हमने किया  है,  वो नदियों के अस्तित्व के लिए  ही खतरा बन चुका है।


 

चित्र साभार: गूगल     पीना तो छोड़, पानी नहाने योग्य भी नहीं हैं                     
'एक्वामेशन' शब्द का हिंदी में अनुवाद करें तो इसका मतलब मेरी समझ से 'जलदाह' होगा । चौंक गए न 'जलदाह' (Aquamation) का नाम सुन कर? जी हाँ ये भी शवों के अंतिम संस्कार का तरीका है, वो भी बिना पर्यायवरण के नुकसान पहुंचाए । 'जलदाह' का मतलब शव को पानी में बहाना नहीं, वरन शव को एक स्टील के कंटेनर में रख कर पानी में पोटेशियम मिला कर 93 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर गर्म किया जाता है । चार घंटे के बाद सिर्फ हड्डियाँ बच जाती हैं। बची हुई हड्डियाँ जो कि इस प्रोसेस में नर्म हो जाती हैं उनको 'क्रश' कर परिवार को सौंप दिया जाता है और बाकि बचा हुआ धरती की हरियाली को बढ़ाने के काम आता है
 
            चित्र साभार: गूगल                              'जलदाह' (Aquamation)

         एक आम शरीर की अंत्येष्टि में 200 किलोग्राम कार्बन डाई आक्साइड और 200 माईक्रोग्राम टोक्सिक मर्करी उत्पादित होता है,लेकिन एक्वामेशन से ऐसा कुछ भी नहीं होता है और व्यक्ति पर्यावरण को स्वच्छ और सुन्दर बनाने में मरने के बाद भी सहयोग देता है  तथा छोड़ जाता हैं इस धरती पर  अपने 'हल्के हरित पदचिन्ह'!!!

आस्ट्रेलिया जैसे देशों में लोग 'एक्वामेशन' अपनाने लगे हैं।  अपनी धरती नदियाँ और पर्यावरण को बचाने में विदेशियों की रूचि और सक्रियता मुझे उनका कायल बना देती है। काश! हमारे देश के लोग भी पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ पाते !! काश! हमारी नदियाँ भी लन्दन की टेम्स नदी  जैसी साफ सुथरी रह पातीं   

3 comments:

  1. ऐसा भी है मालूम ना था

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  2. सही जानकारी का आभाव है वरना हमारे देश भी सफाई में पीछे नहीं होता

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  3. ये बहुत महत्वपूर्ण लेख है... हम लोगों को जागने की जरूरत है और विकास या धर्म के नाम पर पेड़ों की बलि बंद करनी होगी

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