Wednesday, May 16, 2012

उत्तराखंड की ओर- भाग चार

हमें पता था की बद्रीनाथ के पट बंद मिलेंगे, फिर भी हम जोशीमठ गए (जोशीमठ से बद्रीनाथ 50-52 किलोमीटर है) इस तर्ज पर गये कि, 'जिसकी रचना इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा!'

 प्रकृति को निहारना और उस पर मुग्ध होना मेरी फितरत है । आप कैसा भी विकास करें और यदि वो प्रकृति की कीमत पर हो, तो मुझे अच्छा नहीं लगता।

अपने ठहरने की जगह से ब़ाहर आकर चाय और पराठे का नाश्ता किया तथा चल पड़े 'औली' की ओर ....। मन ही मन मैं सोच रहा था कि, "हे भगवन! जोशीमठ से औली जाने वाली 'केबल कार' चालू हो ।" 

मेरी भगवान ने नहीं सुनी मैं और नीरज पैदल ही औली के लिए चल पड़े। रास्ते में किसी से रास्ता पूछने पर पता चलता कि, "बहुत दूर है" तो मन और ख़राब हो जाता । सीढ़ियां चढते और हर फूलती साँस के साथ 'जोशीमठ' नीचे होता जा रहा जा रहा था ।

सीढ़ियां चढते और हर फूलती साँस के साथ 'जोशीमठ' नीचे होता जा रहा  जा रहा था
 मैं और नीरज अपनी-अपनी रूचि के अनुसार प्रकृति और अंचल के सौन्दर्य को अपने-अपने कैमरे में कैद कर रहे थे । जैसे-जैसे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे दृश्यों की विविधता और सौन्दर्य में वृद्धि होती जा रही थी । आखिर में औली पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर मन को धक्का सा लगा (क्योंकि औली सर्दियों में आबाद रहता है)। ऊपर सर उठाकर देखा तो बर्फ दिखाई दी ऊपर से नीचे आती और ऊपर जाती 'केबल कार' भी दिखाई दी ।

हमने झटपट प्रति व्यक्ति दो सौ रुपये के टिकट लिए और बैठ गए 'केबल कार' में

जैसे-जैसे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे दृश्यों की विविधता और सौन्दर्य में वृद्धि होती जा रही थी

जैसे-जैसे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे दृश्यों की विविधता और सौन्दर्य में वृद्धि होती जा रही थी


हमने झटपट प्रति व्यक्ति दो सौ रुपये के टिकट लिए और बैठ गए 'केबल कार' में । थके हुए होने के कारण उस पर बैठ कर बहुत आराम मिला। औली में ये 'केबल क़ार' स्कींईंग करने वालों को ऊपर लेकर जाती है। 

जाने के लिए अनुमति लेनी पड़े
 वहां जाकर हम लोग सोच रहे थे कि शायद ऊपर जाने के लिए अनुमति लेनी पड़े (क्योंकि नीचे हमें यही बताया था ) और हम पास में ही बने एक कमरे से अपने आप को बचाते हुए निकलने की कोशिश कर रहे थे कि मेरी नजर कमरे के अन्दर गई वहां एक ही आदमी था और वो हमें देख कर भी कुछ नहीं बोला तो मेरा डर जाता रहा और हम बेहिचक ऊपर चढने लगे। जैसे-जैसे ऊपर चढ़ रहे थे कदमों के नीचे गीली मिट्टी आने लगी और फिर बर्फ पर कदम भी पड़े। 

बर्फ पर कदम भी पड़े।

प्यास लगी हुई थी आस-पास नजर दौड़ाई तो पानी का कोई स्रोत नहीं दिखाई दिया । बर्फ को गहऱाई में खोद कर साफ़ बर्फ से बोतल भर ली । 

बर्फ को गहऱाई में खोद कर साफ़ बर्फ से बोतल भर ली
हमारे आगे-आगे एक परिवार भी मस्ती करता चल रहा था, हम भी उनके साथ हो लिए ! धीरे -धीरे बात भी होने लगी , पता चला वो लोग मुम्बई से आये थे । उनके साथ एक गाईड भी था । बर्फ पार करते ही एक ढलवां मैदान सा दिखाई दिया नीरज बोला, "ये 'बुग्याल' है।" बुग्याल पर मस्ती करने फोटो खींचने और खिंचवाने के बाद मैं थोडा और ऊपर जाना चाहता था, लेकिन पता नहीं क्यों? नीरज नहीं जाना चाहता था । नीरज के रुके हुए होने पर भी मैं चलने लगा , फलस्वरूप नीरज को न चाहते हुए भी मेरे पीछे-पीछे आना पड़ा मेरे इरादा बर्फ की चोटी पर एकदम ऊपर जाने का था। 

     इरादा बर्फ की छोटी पर एकदम ऊपर  जाने का था
इधर नीरज थके कदमों से ऊपर बढ़ रहा था कि तभी बादलों ने गडगडाहट शुरू कर दी, मुम्बई वाले और वो गाइड तो गायब हो चुके थे। पहाड़ों की ऊँचाई पर अक्सर आकाशीय बिजली गिरती है और मेरे भय का ये सबसे बड़ा कारण है। तब तक नीरज भी मेरे पास आ चुका था। सलाह मशविरा कर के और वहां चित्रांकन करने के बाद मैं बुझे मन से नीचे उतरने लगा ।

मैं बुझे मन से नीचे उतरने लगा
  'डंकी स्टैंड' के पास आकर नीरज ने साथ लाये सामान में से बचे हुए को खाना शुरू कर दिया , हम भी शुरू हो गए। नीचे जिस 'कमरे' से हम बच कर निकलना चाहते थे वहां आये तो, मुम्बई वाले फिर मिल गए। कुछ पकता हुआ देखा कर मैंने पूछा , "भैया कॉफ़ी मिल जाएगी?" वो बोला ,"मिल जायेगी ।" मैंने पूछा, "क्या लोगे?" वो बोला ,"पच्चीस रुपये एक कॉफ़ी के।" मैं मन मार के कॉफ़ी बनवाने लग गया। कॉफ़ी मात्रा में ज्यादा होने की वजह से पीई नहीं जा रही थी और यही हाल नीरज का था। अंत में चलते हुए हमने उसे बीस-बीस रुपये दिए और वो मान गया । 

नीरज मुंबई वालों से बातें करते हुए चल रहा था और मुझे उन में कोई दिलचस्पी नहीं थी । मुझे जिस चीज में दिलचस्पी थी मैं वो ही करने लगा गया अर्थात फोटोग्राफी । मैं नीरज और मुम्बई वालों से दूर होता हुआ दूसरे रास्ते से 'केबल कार' स्टैंड तक पहुँच गया और वहाँ से नीचे!! नीचे पहुँच कर मैं सोच रहा था की पैदल ही चला जाये, जबकि नीरज की सोच मुझे पता नहीं चल पा रही थी और वो मुंबई वालों के आस - पास ही घूम रहा था। मैं उन लोगों से दूर जा कर बैठ गया काफी देर बाद फोन करने पर नीरज आया और हम जोशीमठ की ओर चल दिए ।







                                                             
 नीरज आया और हम जोशीमठ  की ओर  चल दिए

 
क्रमशः ........ अगली यात्रा कल्पेश्वर महादेव । 

उत्तराखंड की ओर- भाग एक 
उत्तराखंड की ओर- भाग दो 
उत्तराखंड की ओर- भाग तीन

6 comments:

  1. vah bidhan babu,lage raho badhiya hai,ghumane ke liye thanks.

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  2. wah aap to kamal ho duniya bhar ke bawal se door gumne ka maza le reho ,sath me photo ke madhyam se hame bhi ghuma rehe ho

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  3. Madhosh kr dene wali post......

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  4. @amanvaishnavi ji
    @Alok Mohan ji
    @Suresh kumar ji
    Thanks

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  5. majedar safar raha ...neeraj se kuch fotu hatkar dekhne ko mili ...

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  6. are Vidhan bhai aage bhi likho intjaar hai...

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