हमें पता था की बद्रीनाथ के पट बंद मिलेंगे, फिर भी हम जोशीमठ गए (जोशीमठ से बद्रीनाथ 50-52 किलोमीटर है) इस तर्ज पर गये कि, 'जिसकी रचना इतनी सुन्दर, वो कितना सुन्दर होगा!'
प्रकृति को निहारना और उस पर मुग्ध होना मेरी फितरत है । आप कैसा भी विकास करें और यदि वो प्रकृति की कीमत पर हो, तो मुझे अच्छा नहीं लगता।
अपने ठहरने की जगह से ब़ाहर आकर चाय और पराठे का नाश्ता किया तथा चल पड़े 'औली' की ओर ....। मन ही मन मैं सोच रहा था कि, "हे भगवन! जोशीमठ से औली जाने वाली 'केबल कार' चालू हो ।"
मेरी भगवान ने नहीं सुनी मैं और नीरज पैदल ही औली के लिए चल पड़े। रास्ते में किसी से रास्ता पूछने पर पता चलता कि, "बहुत दूर है" तो मन और ख़राब हो जाता । सीढ़ियां चढते और हर फूलती साँस के साथ 'जोशीमठ' नीचे होता जा रहा जा रहा था ।
मैं और नीरज अपनी-अपनी रूचि के अनुसार प्रकृति और अंचल के सौन्दर्य को अपने-अपने कैमरे में कैद कर रहे थे ।
जैसे-जैसे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे दृश्यों की विविधता और सौन्दर्य में वृद्धि होती जा रही थी ।
आखिर में औली पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर मन को धक्का सा लगा (क्योंकि औली सर्दियों में आबाद रहता है)। ऊपर सर उठाकर देखा तो बर्फ दिखाई दी ऊपर से नीचे आती और ऊपर जाती 'केबल कार' भी दिखाई दी ।
प्रकृति को निहारना और उस पर मुग्ध होना मेरी फितरत है । आप कैसा भी विकास करें और यदि वो प्रकृति की कीमत पर हो, तो मुझे अच्छा नहीं लगता।
अपने ठहरने की जगह से ब़ाहर आकर चाय और पराठे का नाश्ता किया तथा चल पड़े 'औली' की ओर ....। मन ही मन मैं सोच रहा था कि, "हे भगवन! जोशीमठ से औली जाने वाली 'केबल कार' चालू हो ।"
मेरी भगवान ने नहीं सुनी मैं और नीरज पैदल ही औली के लिए चल पड़े। रास्ते में किसी से रास्ता पूछने पर पता चलता कि, "बहुत दूर है" तो मन और ख़राब हो जाता । सीढ़ियां चढते और हर फूलती साँस के साथ 'जोशीमठ' नीचे होता जा रहा जा रहा था ।
सीढ़ियां चढते और हर फूलती साँस के साथ 'जोशीमठ' नीचे होता जा रहा जा रहा था । |
हमने झटपट प्रति व्यक्ति दो सौ रुपये के टिकट लिए और बैठ गए 'केबल कार' में |
जैसे-जैसे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे दृश्यों की विविधता और सौन्दर्य में वृद्धि होती जा रही थी |
जैसे-जैसे कदम ऊपर की और बढ़ रहे थे दृश्यों की विविधता और सौन्दर्य में वृद्धि होती जा रही थी |
हमने झटपट प्रति व्यक्ति दो सौ रुपये के टिकट लिए और बैठ गए 'केबल कार' में । थके हुए होने के कारण उस पर बैठ कर बहुत आराम मिला। औली में ये 'केबल क़ार' स्कींईंग करने वालों को ऊपर लेकर जाती है।
जाने के लिए अनुमति लेनी पड़े |
बर्फ पर कदम भी पड़े। |
प्यास लगी हुई थी आस-पास नजर दौड़ाई तो पानी का कोई स्रोत नहीं दिखाई दिया । बर्फ को गहऱाई में खोद कर साफ़ बर्फ से बोतल भर ली ।
बर्फ को गहऱाई में खोद कर साफ़ बर्फ से बोतल भर ली |
इरादा बर्फ की छोटी पर एकदम ऊपर जाने का था। |
मैं बुझे मन से नीचे उतरने लगा |
नीरज मुंबई वालों से बातें करते हुए चल रहा था और मुझे उन में कोई दिलचस्पी नहीं थी । मुझे जिस चीज में दिलचस्पी थी मैं वो ही करने लगा गया अर्थात फोटोग्राफी । मैं नीरज और मुम्बई वालों से दूर होता हुआ दूसरे रास्ते से 'केबल कार' स्टैंड तक पहुँच गया और वहाँ से नीचे!! नीचे पहुँच कर मैं सोच रहा था की पैदल ही चला जाये, जबकि नीरज की सोच मुझे पता नहीं चल पा रही थी और वो मुंबई वालों के आस - पास ही घूम रहा था। मैं उन लोगों से दूर जा कर बैठ गया काफी देर बाद फोन करने पर नीरज आया और हम जोशीमठ की ओर चल दिए ।
नीरज आया और हम जोशीमठ की ओर चल दिए ।
क्रमशः ........ अगली यात्रा कल्पेश्वर महादेव ।
उत्तराखंड की ओर- भाग एक
उत्तराखंड की ओर- भाग दो
उत्तराखंड की ओर- भाग तीन