Saturday, July 13, 2013

तू खुल्ला सांड बन जा ....... और इंडिया गेट पर मोमबत्तियाँ जलाते रहना , फिर किसी मासूम के लिए!!

दिल्ली में सामूहिक बलात्कार का शिकार बनी 'निर्भया' का फैसला ग्यारह जुलाई को आने वाला था ,समाचार चैनलों पर ये लाइन चलने लगी थी। बीच-बीच में एक-दो म्यूजिक चैनलों को भी पुराने गानों की तलाश में टटोल रहा था। तभी एक फिल्म (रब्बा मैं क्या करूँ ) के प्रोमो को देखा और सुना। 

गाने के बोल देखिये, "दुनिया एक तबेला है, कन्ट्रोल छोड़ कोई कांड कर जा; तू खुल्ला सांड बन जा!!"                               

माना कि फिल्मों को मनोरंजन के रूप में लिया जाना चाहिए, लेकिन समाज का आधे से भी आधिक तबका फिल्मों से चेतन व अवचेतन रूप में प्रभावित रहता है।  मैं कोई समाज सुधारक नहीं हूँ, लेकिन समाज में रहता हूँ और उस में घटित घटनाओं से प्रभावित भी होता हूँ। मानसिक दीवालियेपन की हद है इस गाने के बोल!! 

क्या स्वच्छन्दता  को हवा नहीं देते हैं इस तरह के गाने ? क्या सेंसर बोर्ड में मूर्ख बैठे हैं? बहुत आसान है बिगाड़ना, मेहनत बनाने में लगती है। जो देश तप, त्याग, आत्मसंयम की बातें करता था, वो अचानक "दुनिया एक तबेला है, कन्ट्रोल छोड़ कोई कांड कर जा; तू खुल्ला सांड बन जा!!"  कहने लगे तो शक होता है कि, इसके पीछे कोई और ताकतें काम तो नहीं कर रही हैं?  

मैं माननीय पाठकगण से जानना चाहता हूँ कि, इस गाने को गाने वाले, लिखने वाले, फिल्म में डालने वाले आदि-आदि के घर-परिवार, माँ, बहन, बेटी नहीं होंगी या वो ये भूल जाते हैं कि, जिन्हें वो 'खुल्ला सांड' बना कर 'कांड करवाना' चाहते हैं, उन 'सांडों का रुख' उनके घरों की तरफ भी हो सकता है। 

तमाम 'मोमबत्ती ब्रिगेड' भी सवालों के घेरे में आ जाती है कि, कहीं फैशन के लिए और चर्चा में रहने के लिए तो वो ये सब नहीं करते ? अगर वो वाकई गंभीर हैं तो इस तरह की बातों का विरोध क्यों नहीं?

 तमाम हताश करने वाली बातों के बीच एक स्वच्छ हवा के झोंके की तरह "भाग मिल्खा भाग" देखी। एक बेहतरीन फिल्म। ये फिल्म मेरी राय में टैक्स फ्री होनी चाहिए। फिल्म शुरू होने के साथ ही मन में स्पंदन शुरू कर देती है। सफलताओं के पीछे के सच को दिखाने के लिए पूरी फिल्म यूनिट को साधुवाद!!  
साभार : गूगल
 बीमार हूँ कम लिखा, ज्यादा समझना।