Sunday, June 05, 2011

हम गए (माउन्ट) आबू, हो गए बेकाबू !



आखिर 20 मार्च आ गया .........

           तय कार्यक्रम के अनुसार हम शाम पॉँच बजे महाविद्यालय पहुँच गए।

               अचानक आसमान में बादलों ने अपना डेरा जमा लिया और लगे गरजने…तेज हवाओं का साथ देने बरखा रानी भी आ गयी और चैत भी सावन मय हो उठा ।  गर्मी के प्रकोप से राहत तो मिली,लेकिन मन में एक आशंका भी उठी की सहपाठियों के न आने से शैक्षणिक भ्रमण का प्रोग्राम कही रद्द न हो जाये, किन्तु   जितना मै इस भ्रमण को लेकर उत्साहित था उतने ही उत्साहित मेरे सहपाठी भी थे ...तो लगभग सभी सहपाठी आये थे।
        
                   महाविद्यालय के सचिव सर ने खुशखबरी दी की हम माउंट आबू भी जायेंगे । बरसते मौसम में मन मयूर नाच उठा, क्योंकि राजस्थान के इस एक मात्र हिल स्टेशन को देखने के लिए मै बहुत समय से लालायित था।

     भाई दिनेश के मंत्रोच्चार के बाद दोनों बसे "चेतक" और "मरुधर" सायं आठ बजे सिद्धि विनायक कॉलेज (जयपुर)के गेट से रवाना हुई ...चूँकि मेरा नंबर मरुधर में आया था सो मैंने अपनी सीट सम्भाल ली ।

              मन में एक उमंग लिए हम उदयपुर के लिए रवाना हुए हमारी पहली मंजिल नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन करना था तत्पश्चात आगे के कार्यक्रम तय थे।

        जयपुर के निकलते ही साथियों ने हुडदंग चालू कर दी। प्रिंसिपल जी के साथ दो गुरु जी (पुष्पेन्द्र सर और रितेन सर) हमारे साथ मरुधर में बैठे थे.....लेकिन "जवानी के ज्वार में मर्यादाओं के तटबंध टूट गए" और गुरु जी लोग भी "क्षमा बडन को चाहिए ....." की तर्ज पर मूक होकर देखते सुनते रहे।                               

       अजमेर से आगे लगभग 10-11 बजे के बीच में हमने एक ढाबे पे खाना खाया, सचिव सर  के शब्दों में "छप्पन प्रकार के व्यंजनों का स्वाद लगा"।

              वहां से गाड़ी चली तो लगा की सभी सहपाठी सो जायेंगे,लेकिन हुआ उसका उल्टा ऐसा लगा जैसे वो खाना खाने का ही इंतजार कर रहे थे और हुडदंग में और तेजी आ गयी गुरूजी लोगों के निर्देश पे थोडी देर तक हुडदंग में कमी जरूर आती थी,लेकिन फिर पिछली बार से और तेज शुरू हो जाता और चलते हुडदंग के बीच मुझे नींद आ गई।
             ………..और किसी ने "नाथद्वारा आ गया" कह कर जगाया।
मै आँख मलते हुए उठा और अपने को दुरुस्त करता हुआ बस से नीचे उतर गया। वहां से लगभग एक किलोमीटर पैदल चलकर हम श्रीनाथ जी के मंदिर पहुंचे। अभी पट खुलने में टाइम था सो हमारे प्रतिभावान साथियों ने गाना और नाचना शुरू कर दिया, उनका साथ देने कुछ   भक्त और आ गए प्रभात फेरी वालों ने झाल मंझीरे और ढोलक से शब्दों को सुर दे दिए और रितेन सर के नृत्य ने अलसाई भोर को जीवंत बना दिया .......वो समां बंधा की मज़ा आ गया। अपने नृत्य और संगीत रूपी सुमन "भगवान श्रीनाथ" के चरणों में अर्पित कर उनके दर्शन हेतु लाइन में लगे 20-25 मिनट के इंतजार के बाद पट खुले और एक धक्के के बाद हम मंदिर के प्रांगण में पहुँच गए ।
  गर्भ गृह में पहले से ही भीड़ मौजूद थी धक्का खाकर और देकर जैसे तैसे हमने श्रीनाथ जी के दर्शन किये।

शेष अगले भाग में ........

1 comment:

  1. करो भाई करो किसी हिल स्टेशन की सैर तो करो। इस भयानक गर्मी से कुछ तो राहत मिले।

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